Wednesday, May 1, 2013

तन्हाई - the lonliness

दिल धुंडने निकला महफ़िल 
महफ़िल में भी मिली
तन्हाई 
गुनगुना रही थी तेरी हसी कानो में 
लगी थी काफिरों की खिलखिलाहट मुझे आजमाने में ।

आज फिर तनहा है बेचारा 
सोच बेठा है खुद को आवारा 
ओत्प्रोथ होक भावनाए बह रही है 
आज तो हवा भी रो रही है ।

तलाश रहा है वोह भीड़ में अपने,
अपनों ने ही सब तोड़े थे सपने
आज सपनो के पीछे भागना छोड़ दिया 
रो रो के उसने जीना छोड़ दिया।

समय बीत जायेगा,
दिल ही तो है क्या वोह धडकना भूल गायेगा 
मौसम फिर बदलेगा 
कभी न कभी तो संभल ही जायेगा।

5 comments:

  1. Mohitwa.. This one is the best one.. :)
    Attempts are gud.. keep it up.. :)
    Last para is gud..i liked it...

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  2. Wow - From Prose to Poetry - in such a quick pace? Awesome! Kabhi na kabhi toh Sambhal Hi Jayega - superb Line!!

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